कविता

Poem in Hindi | ★ हिन्द के हिन्दू ★

Poem in Hindi हिन्द है हमारा,हम हिन्दू है,  बहता हुआ सिंधु हैं, की हमे मत रोको, मत बांधो, किसी यम, नियम में, असाध्य हूँ, मत साधो, चंद स्वार्थो के खातिर, हमको सिंधु सा बहने दो, हिन्दू को हिन्दू रहने दो,,आज जो तुम कह रहे हो, मेरा अल्लाह बड़ा, मेरा राम बड़ा तो सुनो विधर्मियो, ना […]

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तभी साथ चलिये,,

कठिन है डगर, और चढ़ाई बहुत है,, चढ़ने का है इरादा, तभी साथ चलिये,, कि,है हर तरफ नफरत का बोलबाला,, है मुहब्बत का वादा, तभी हमसे मिलिए,, कठिन है डगर……1है करना जो कुछ अभी कर ही लीजे, कही ऐसा ना हो जाए कि फिर हाथ मलिये,, समय कम है और काम बाकि बहुत है, करने

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बारूदी रात, रौशनी की बात,,

न करो कोई रौशनी की बात, ना कोई मशाल जलाओ,, की है ये बारूदी रात, ना कोई चिंगारी सुलगाओ,, ना करो कोई एकता की बात हंगामा हो जाएगा ना भीड़ जुटाओ, सभी अंधे है,क्या दिन क्या रात, सोने दो इन्हें ना कोई जगाओ,, की है ये बारूदी रात, ना कोई चिंगारी सुलगाओ,, ना करो कोई आजादी

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मैं कोई गांधी नही हूँ,

हवा हूं मैं,  मगर आँधी नही हूँ,, दुर्व्यवस्था से लड़ने वाला, मैं कोई गांधी नही हूँ, हवा ही तो हूँ  सो कोई रोकता नही है बहता चला जाता हूं  कोई टोकता नहीं है, दरख्तें राह दे देती हैं, समंदर थाह दे देती है,गर मैं होता कोई आँधी, दंभ भरता अपनी द्रुतगति का, उड़ा ले जाना

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दोस्त मेरा

वो सच्चा दोस्त मेरा मुझमे जो कमी ढूंढे है पूरा सूख चुका आँखों का जो ये दरिया वो सच्चा दोस्त मेरा,जो आँखों में नमी ढूंढे वो जो हर वक्त मेरा अपनों सा ख्याल रखे मेरे सारे यादो और वादों को दिल में जो संभाल रखे होके वेपरवाह कही उड़ता फिरूँ खा के धोखा अगर मैं गिरूँ

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जलने वाले लोग

​कौन कहता है, किसी को देख कोई जलता नही है, गर नही जलता है, तो उसमें तेल नहीं है, किसी को देख के जलना ये कोई खेल नहीं है, कुछ तो जलते हुए, बस जल जाते हैं, हो जाते हैं धुआँ-धुंआ राख में बदल जाते हैं और, कुछ ऐसे भी हैं, चाहें जैसे भी हैं,

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सिपाही: कलम और बन्दुक

मैं सिपाही एक बदनाम राही, की मै चलता हूँ जिसपे नही है कोई राह मौत के दर्द की आह  किसी एक सिपाही का बदनाम राही का की जिसपर तानी थी बन्दुक  पहली बार छुटी गोली ,निकली हूक… था वो दुशमन जबतक जिन्दा था पर मार गिराने के बाद ये मन न जाने क्यों शर्मिंदा था

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देश है कोई गिरगिट नही है

ये भारत देश है, भारत को भारत रहने दो, बदलाव नही पसंद इसे, की तुम इसे नही बदल पाओगे करोगे जब भी कोशिस, खुद को विफल पाओगे, ढेर सारा रंग है इसमें  तुम भगवा ना कर पाओगे, बच्चा नही है जनतंत्र अब  तुम अगवा ना कर पाओगे ये जो तुम्हारा बदलाव का संकल्प है, बताओ

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“सचमुच इश्क नहीं आसां”

कलेजा फट रहा मेरा,कि,है ये दिल मेरा रुआंसा, है भीतर जल रही ज्वाला, कि दिल मे उठ रहा धुंआ सा, नहीं}कुछ सूझ रहा हमको, हर तरफ धुंध और कुहासा, जो उनसे था लगा रक्खा, हो गयी धूमिल सब आशा , किसीने सच कहा है ये, की सचमुच इश्क नहीं आसां,,मैं उनके प्यार में था पागल

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“दोस्तो के खातिर”

अंधा हो गया हूं, जबसे दोस्ती की है, दुश्मनी थी  तो पारखी हुआ करता था,लंगड़ा हो गया हूं, जबसे दोस्ती कि है, दुश्मनी थी तो मै तेज भागा करता था,बहरा हो गया हूं, जबसे दोस्ती की है, दुश्मनी थी  तो सब कुछ सुना करता था,पागल हो गया हूं, जबसे दोस्ती की है, दुश्मनी थी, तो

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