“जो हम-तुम मिले नहीं हैं”

आसान नहीं है,

तुझपर कविता लिखना,

 कि जैसे ,

सागर को सरिता लिखना,

मगर मैंने लिखा,

उन सभी बातों को,

जो मुझे तुझमे दिखा,,

कि जो तेरे कजरारे नैन,

जैसे अमावस की रैन,

उसमे मुझे शायद 

किसी का इंतजार दिखा,,

जो तुम्हारी पतली लकड़ी जैसी,

काया से चिपकी,

निहारना चाहती है, बस उन्हींको,

तुम लड़की जो हो,

सो तुझमें छिपी अनुराग बहुत है,

की लगती लकड़ी सी हो,

सो तुझमे छिपी आग बहुत है।

नाराज ना होना,

की मैंने वही लिखा,

जो मुझे ऊपर से दिखा,,

तुम होगी और भी खूबसूरत,

ऐसा मेरा अनुमान है,

मेरे मन मे तुम्हारे लिये,

बहुत सम्मान है,,

तुम हो वो खुबसुरत पुष्पकली

जो अबतक खिले नही हैं,

कैसे मालूम हो गुलशन की महक,

जो हम-तुम मिले नहीं हैं।